08-04-84  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

संगमयुग पर प्राप्त अधिकारों से विश्व-राज्य अधिकारी

ज्ञान सूर्य शिवबाबा अपने सफलता के सितारों के प्रति बोले:-

बापदादा आज स्वराज्य अधिकारी श्रेष्ठ आत्माओं की दिव्य दरबार देख रहे हैं। विश्व राज्य दरबार और स्वराज्य दोनों ही दरबार अधिकारी आप श्रेष्ठ आत्मायें बनती हो। स्वराज्य अधिकारी ही विश्व-राज्य अधिकारी बनते हैं। यह डबल नशा सदा रहता है? बाप का बनना अर्थात् अनेक अधिकार प्राप्त करना। कितने प्रकार के अधिकार प्राप्त किये हैं, जानते हो? अधिकार-माला को याद करो। पहला अधिकार - परमात्म बच्चे बने अर्थात् सर्वश्रेष्ठ माननीय पूज्यनीय आत्मा बनने का अधिकार पाया। बाप के बच्चे बनने के सिवाए पूज्यनीय आत्मा बनने का अधिकार प्राप्त हो नहीं सकता। तो पहला अधिकार - पूज्यनीय आत्मा बने। दूसरा अधिकार - ज्ञान के खज़ानों के मालिक बने अर्थात् अधिकारी बने। तीसरा अधिकार - सर्व शक्तियों के प्राप्ति के अधिकारी बने। चौथा अधिकार - सर्व कर्मेन्द्रियों-जीत स्वराज्य अधिकारी बने। इस सर्व अधिकारों द्वारा मायाजीत सो जगत जीत विश्व-राज्य अधिकारी बनते। तो अपने इन सर्व अधिकारों को सदा स्मृति में रखते हुए समर्थ आत्मा बन जाते। समर्थ बने हो ना!

स्वराज्य वा विश्व का राज्य प्राप्त करने के लिए विशेष 3 बातों की धारणा द्वारा ही सफलता प्राप्त की है। कोई भी श्रेष्ठ कार्य की सफलता का आधार, त्याग, तपस्या और सेवा है। इन तीनों बातों के आधार पर सफलता होगी वा नहीं होगी यह क्वेश्चन नहीं उठ सकता। जहाँ तीनों बातों की धारणा है वहाँ सेकण्ड में सफला है ही है। हुई पड़ी है। त्याग किस बात का? सिर्फ एक बात का त्याग - सर्व त्याग सहज और स्वत: कराता है। वह एक त्याग है - देह भान का त्याग, हद के मैं-पन का त्याग सहज करा देता है। यह हद का ‘मैं-पन’ - तपस्या और सेवा से वंचित करा देता है। जहाँ हद का ‘मै-पन’ हैं वहाँ त्याग, तपस्या और सेवा हो नहीं सकती। हद का मैं-पन, मेरा-पन, इस एक बात का त्याग चाहिए। ‘मैं और मेरा’ समाप्त हो गया तो बाकी क्या रहा? बेहद का। ‘मैं’ एक शुद्ध आत्मा हूँ और मेरा तो एक बाप दूसरा न कोई। मेरा तो एक बाप। तो जहाँ बेहद का बाप सर्वशक्तिवान हैं, वहाँ सफलता सदा साथ है। इसी त्याग द्वारा तपस्या भी सिद्ध हो गई ना। तपस्या क्या है? - मैं एक का हूँ। एक की श्रेष्ठ मत पर चलने वाला हूँ। इसी से एकरस स्थिति स्वत: हो जाती है। सदा एक परमात्म-स्मृति - ये ही तपस्या है। एकरस स्थिति ये ही श्रेष्ठ आसन है। कमल पुष्प समान स्थिति यही तपस्या का आसन है। त्याग से तपस्या भी स्वत: ही सिद्ध हो जाती है। जब त्याग और तपस्या स्वरूप बन गये तो क्या करेंगे? अपने पन का त्याग अथवा मैं-पन समाप्त हो गया। एक की लगन में मगन तपस्वी बन गये तो सेवा के सिवाए रह नहीं सकते। यह हद का ‘मैं और मेरा’ सच्ची सेवा करने नहीं देता। त्यागी और तपस्वी मूर्त सच्चे सेवाधारी हैं। मैंने यह किया, मैं ऐसा हूँ, यह देह का भान जरा भी आया तो सेवाधारी के बदले क्या बन जाते? सिर्फ नामधारी सेवाधारी बन जाते। सच्चे सेवाधारी नहीं बनते। सच्ची सेवा का फाउण्डेशन है - त्याग और तपस्या। ऐसे त्यागी तपस्वी सेवाधारी सदा सफलता स्वरूप हैं। विजय, सफलता उनके गले की माला बन जाती है। जन्म सिद्ध अधिकारी बन जाता। बापदादा विश्व के सर्व बच्चों को यही श्रेष्ठ शिक्षा देते हैं कि - ‘त्यागी बनो, तपस्वी बनो, सच्चे सेवाधारी बनो’।

आज का संसार मृत्यु के भय का संसार है। (आँधी-तूफान आया) प्रकृति की हलचल में आप तो अचल हो ना! तमोगुणी प्रकृति का काम है हलचल करना और आप अचल आत्माओं का कार्य है - प्रकृति को भी परिवर्तन करना। नथिंग न्यू। यह सब तो होना ही है। हलचल में ही तो अचल बनेंगे। तो स्वराज्य अधिकारी दरबार निवासी श्रेष्ठ आत्माओं ने समझा! यह भी राज्य दरबार है ना। राजयोगी अर्थात् स्व के राजे। राजयोगी दरबार अर्थात् स्वराज्य दरबार। आप सभी भी राजनेता बन गये ना। वह हैं देश के राजनेता और आप हो स्वराज्य-नेता। नेता अर्थात् नीति प्रमाण चलने वाले। तो आप धर्मनीति, स्वराज्य नीति प्रमाण चलने वाले स्वराज्य नेता हो। यथार्थ श्रेष्ठ नीति अर्थात् श्रीमत। ‘श्रीमत’ ही यथार्थ नीति है। इस नीति पर चलने वाले सफल नेता हैं।

बापदादा देश के नेताओं को मुबारक देते हैं। क्योंकि फिर भी मेहनत तो करते हो ना। भल वैराइटी हैं। फिर भी देश के प्रति लगन है। हमारा राज्य अमर रहे - इस लगन से मेहनत तो करते हैं ना। हमारा भारत ऊँचा रहे। यह लगन स्वत: ही मेहनत कराती है। अब समय आयेगा जब राज्य-सत्ता और धर्म-सत्ता दोनों साथ होंगी। तब विश्व में भारत की जय-जयकार होगी। भारत ही लाइट हाउस होगा। भारत की तरफ सबकी दृष्टि होगी। भारत को ही विश्व प्रेरणा-पुंज अनुभव करेगा। भारत अविनाशी खण्ड है। अविनाशी बाप की अवतरण भूमि है। इसलिए भारत का महत्व सदा महान है। अच्छा-

सभी अपने स्वीट होम में पहुँच गये। बापदादा सभी बच्चों को आने की बधाई दे रहे हैं। भले पधारे। बाप के घर के श्रृंगार भले पधारे। अच्छा-

सभी सफलता के सितारों को, सदा एकरस स्थिति के आसन पर स्थित रहने वाले तपस्वी बच्चों को, सदा एक परमात्म श्रेष्ठ याद में रहने वाली महान आत्माओं को, श्रेष्ठ भावना श्रेष्ठ कामना करने वाले विश्व कल्याणकारी सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री भ्राता माधव सिंह सोलंकी से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात

बाप के घर में वा अपने घर में भले आये। बाप जानते हैं कि सेवा में लगन अच्छी है। कोटों में कोई ऐसे सेवाधारी है। इसलिए सेवा की मेहनत की आन्तरिक खुशी प्रत्यक्षफल के रूप में सदा मिलती रहेगी। यह मेहनत सफलता का आधार है। अगर सभी निमित्त सेवाधारी मेहनत को अपनायें तो भारत का राज्य सदा ही सफलता को पाता रहेगा। सफलता तो मिलनी ही है। यह तो निश्चित है लेकिन जो निमित्त बनता है, निमित्त बनने वाले को सेवा का प्रत्यक्षफल और भविष्य फल प्राप्त होता है। तो सेवा के निमित्त हो। निमित्त-भाव रख सदा सेवा में आगे बढ़ते चलो। जहाँ निमित्तभाव है, मैं-पन का भाव नहीं है वहाँ सदा उन्नति को पाते रहेंगे। यह निमित्त-भाव शुभ-भावना, शुभ-कामना स्वत: जागृत करता है। आज शुभ-भावना, शुभ-कामना नहीं है उसका कारण निमित्त-भाव के बजाए मैं-पन आ गया है। अगर निमित्त् समझें तो करावनहार बाप को समझें। करन करावनहार स्वामी सदा ही श्रेष्ठ करायेंगे। ट्रस्टीपन के बाजए राज्य की प्रवृत्ति के गृहस्थी बन गये हैं, गृहस्थी में बोझ होता है और ट्रस्टी पन में हल्कापन होता है। जब तक हल्के नहीं तो निर्णय शक्ति भी नहीं है। ट्रस्टी हैं, हल्के हैं तो निर्णय शक्ति श्रेष्ठ है। इसलिए सदा ट्रस्टी हैं, निमित्त हैं, यह भावना फलदायक है। भावना का फल मिलता है। तो यह निमित्त-पन की भावना सदा श्रेष्ठ फल देती रहेगी। तो सभी साथियों को यह स्मृति दिलाओं कि निमित्त-भाव, ट्रस्टी-पन का भाव रखो। तो यह राजनीति विश्व के लिए श्रेष्ठ नीति हो जायेगी। सारा विश्व इस भारत की राजनीति को कापी करेगा। लेकिन इसका आधार ट्रस्टीपन अर्थात् - निमित्त-भाव।

कुमारों से

कुमार अर्थात् सर्व शक्तियों को, सर्व खज़ानों को जमा कर औरों को भी शक्तिवान बनाने की सेवा करने वाले। सदा इसी सेवा में बिजी रहते हो ना। बिजी रहेंगे तो उन्नति होती रहेगी। अगर थोड़ा भी फ्री होंगे तो व्यर्थ चलेगा। ‘समर्थ रहने के लिए बिजी रहो’। अपना टाइम-टेबल बनाओ। जैसे शरीर का टाइम-टेबल बनाते हैं ऐसे बुद्धि का भी टाइम-टेबल बनाओ। बुद्धि से बिजी रहने का प्लैन बनाओ। तो बिजी रहने से सदा उन्नति को पाते रहेंगे। आजकल के समय प्रमाण कुमार जीवन में श्रेष्ठ बनना बहुत बड़ा भाग्य है। हम श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मा हैं, यही सदा सोचो। याद और सेवा का सदा बैलेन्स रहे। बैलेन्स रखने वालों को सदा ब्लैसिंग मिलती रहेगी। अच्छा-